प्रकृति एवं शासन की गलत नीतियों के बीच पिस रहा क्षेत्र का किसान ….
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फसल बीमा धारक किसान बरबादी के मुहाने पर बैठकर निहार रहा है बीमा कम्पनी ….
विजय चौधरी / सह संपादक
अम्बेडकरनगर। एक तरफ जहाँ क्षेत्र का किसान मौसम के बेरहम लाठी से लहूलुहान हो चला वहीं सरकार की गलत नीतियां भी उसकी रक्तरंजित शरीर पर अट्टहास कर रही है ।
कभी उत्तम खेती का दर्ज़ा हासिल कर चुकी किसानी आज सबसे निचले पावदान पर टिकी है । प्रकृति और शासन के बेरुखी के बीच पिसता किसान आज फ़ुटबाल की गेंद सरीखे हो चला है । जिसे कभी प्रकृति ने ठुकराया तो कभी शासन की गलत नीतियों ने ।
मौसम की बेरुखी ने किसानों को इतना हताश व निराश कर दिया है । कि आज उसके समाने निवाले का संकट उत्पन्न हो चला है । अतिवृष्टि के व्यापक जलप्लावन ने जहाँ उनकी फसलों को जमींदोज होकर पानी में डूब चुकी है ! वहीं उनकी नकदी फसल के रूप जानी जाने वाली गन्ने की फसल भी गत वर्ष से घाटे की खेती साबित हो चली है ।
एक तरफ़ क्षेत्र का किसान जहाँ प्रकृति की बेरहम लाठी के मार से लहूलुहान हो चला है । वहीं सरकार की गलत नीतियां भी उसे ठगने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है । ऐसे किसान अपने पाल्यौ को उचित शिक्षा व हाथ पीले करने एवं उनके परवरिश के दायित्व को कैसे निभा सकेगा ? सरकार से लिए गये ऋण की भरपाई के लिए भी संकट उत्पन्न हो चला है ।
किसान क्रेडिट कार्ड धारक किसान से जबरन फसल बीमा के नाम पर उनके खाते से धन निकाल लिया गया । पर आज जब वह बरबादी के मुहाने खड़ा होकर अपने बरबादी का तमाशा देख रहा है । तो हमेशा की तरह इस वर्ष भी फसल बीमा कम्पनी भी गधे की सींग बनी ग़ायब हो चली है । निरीह किसान को यह भी मालूम कि हमारे खाते से निकले धन किसको दिये गये ? और हम अपनी फरियाद किससे करें ?
भारी बरसात से तबाह हुए पीड़ित किसानों ने जिलाधिकारी अम्बेडकर नगर से फसलों की क्षतिपूर्ति हेतु उचित फसल बीमा दिलाने की मांग की है ।