पर्यावरण और मानव : डॉ ओ पी चौधरी
1 min readपर्यावरण और मानव : डॉ ओ पी चौधरी
यो देवोदर्गनो, योदुष्सु यो विश्व भवनमाविवेश।
योऔषधिक्ष यो वनस्पतिषु तस्मै देवाय नमोनमः।।
हमारे प्राचीन विचारकों, चिंतकों, दार्शनिकों ने सदैव प्रकृति की सेवा,पूजा,संरक्षण प्रार्थना,अर्चना,अभ्यर्थना कर पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने में सहयोग किया है। जो आकाश, वायु,जल,अग्नि और पृथ्वी से आच्छादित है,जो औषधियों एवं वनस्पति में भी विद्यमान है,उस परमेश्वर को हम नमन करते हैं। वास्तव में पर्यावरण प्रकृति की अनुपम कृति है। सभी प्राणी,वनस्पति आदि प्रकृति की कृति हैं। मनुष्य का क्रमिक विकास प्राकृतिक पर्यावरण से अनवरत क्रिया –प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप हुआ है। मानव और प्रकृति दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं। विकास के क्रम में भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति के लिए हमने कल-
कारखाने,गगन चुंबी इमारतें,आवागमन के अनेक साधन विकसित कर लिए,लेकिन प्रकृति के साथ समन्वय बिगड़ने लगा। प्रकृति पर विजय का सपना मानव ने संजो लिया। निःसंदेह सुविधाएं बढ़ी लेकिन हमारे जीवन को उथल- पुथल करने के लिए कभी बाढ़, कभी सूखा,सुनामी,उत्तराखंड में भीषण जल प्रवाह और सदी की सबसे बड़ी महामारी कोविड-19 की दस्तक कहीं न कहीं से प्रकृति का प्रकोप ही है। भगवती चरण वर्मा की कृति “सामर्थ्य और सीमा” की स्मृति स्वाभाविक हो जाती है।”जिओ और जीने दो” की भारतीय संस्कृति की अवधारणा छिन्न भिन्न होती दिख रही है। हमारी संस्कृति,साहित्य,दर्शन में अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी,अंतरिक्ष,वन,बनस्पतियां, जल प्रपात,नदियां,ताल पोखर,जलचर,नभचर, जलवायु सहित सूक्ष्म जीवों आदि की समृद्धि व संवर्धन की बातें कही गई है। “यत पिंडे तत ब्राहमांडे” अर्थात जो इस शरीर में है वही प्रकृति में है। प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से,रासायनिक उर्वरकों,कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से धरती की उर्वरा शक्ति प्रभावित होने लगी।पंजाब की धरा इतनी प्रदूषित हो गई कि वहां का अन्न खाकर लोग इस कदर बीमारी के चंगुल में फंस गए कि कैंसर एक्सप्रेस चलने लगी। कहा गया है कि स्वास्थ्य सर्वोत्तम धन है। पहला सुख निरोगी काया की अवधारणा को हम माया के फेर में पीछे छोड़ चुके हैं। जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस ट्रमैन ने 1945 में ही कह दिया था कि हर राज्य का लक्ष्य “विकास” तथा “पर्यावरण संरक्षण”होना चाहिए। किंतु इस दिशा में गंभीर प्रयास 1972 में किया गया। समस्त जैविक और अजैविक तत्वों का समावेश पर्यावरण में होता है। जैविक के अंतर्गत न केवल मानव बल्कि सभी जीव जंतु,पेड़ पौधे,पशु पक्षी आते हैं।
मानव अपनी विकासोन्मुखी आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु प्राकृतिक संपदाओं पर निर्भर रहता है। प्रकृति हमारी सभी आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम भी है,लेकिन जब हम जरूरत से ज्यादा लेने और जोर जबरदस्ती प्रयास करने लगते हैं,तब असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है,फिर प्रकृति अपना तरीका ढूडती है,सामंजस्य स्थापित करने के लिए। पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने के कारण मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ ही रहा है,जीव जंतुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं।पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए जल,जंगल,जमीन,
जीव सभी का संरक्षण जरूरी है। इसके लिए हमें सरकारों का मुँह देखने की अपेक्षा स्वयं को आगे लाना होगा और प्रकृति के संरक्षण में अपना सहयोग एक दूसरे को करना होगा। पर्यावरण एक साझी विरासत है तो एक साझी जिम्मेदारी भी है। यह अकेले किसी राज्य या व्यक्ति का विषय नहीं है,बल्कि सामूहिक दायित्व है।
मानव का अपने प्राकृतिक पर्यावरण से अनेक उद्देश्यपूर्ण संबंध है। समय के साथ इसमें परिवर्तन आया है। मानव ने अपनी आवश्यकता के अनुसार पर्यावरण को प्रभावित किया है।प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन किया है। यहां तक कि ओजोन पर्त का भी क्षरण हो गया, जिसकी कुछ मरम्मत कोरोना महामारी के दौरान हुए लॉक डाउन से हुई है। लेकिन व्यक्ति की आवश्यकता ही नहीं बल्कि उसके लालच ने और अविवेकपूर्ण ढंग से प्रकृति का दुरुपयोग करने से मानव ने ऐसी दीर्घकालिक समस्याओं को उत्पन्न किया है,जो उसके प्राकृतिक पर्यावरण और अस्तित्व के लिए हानिकारक है। औद्योगिकीकरण,भूगर्भ जल दोहन,निर्वनीकरण,मृदा अपरदन,विकास की अन्धी दौड़ ने मानव और प्रकृति के बीच गहरी खाईं बना दी है। स्वयं के पैदा किये प्रदूषण का खतरा पूरी मानवता के ऊपर मंडरा रहा है।भांति-भाँति के रोगों में इजाफा हुआ है। विशेषकर वायु और जल प्रदूषण के कारण श्वांस और उदर(लीवर)रोगों में वृद्धि हुई है।
पर्यावरण संसाधन एक वैश्विक संपत्ति है। इसके संरक्षण से सभी को लाभ मिलता है। पर्यावरण के प्रति जागरूक करने, सतर्क करने और सचेत होने का समय है अन्यथा आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ नहीं करेंगी। हमें शिक्षा के
प्रत्येकस्तर-प्राथमिक,माध्यमिक,उच्च,तकनीकी,व्यावसायिक सभी स्तर पर कार्य करने की जरूरत है। शिक्षा में पर्यावरण संरक्षण को जोड़ना होगा।सुव्यवस्था, श्रमशीलता,सहकारिता, जन भावना,मितव्यता,उदारता जैसे मूल्यों को हम शिक्षा के साथ जोड़कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सार्थक प्रयास कर सकते हैं। राष्ट्र के प्रखर जाग जाओ:
जाग जाओ भारत के लाल
तुम्हें संसार जगाना है।
भेड़ सा सिंह-शावक सोया
उसे निज परिचय पाना है।
जोहार प्रकृति! जोहार धरती माँ!
डॉ ओ पी चौधरी
संरक्षक, अवधी खबर;
समन्वयक,अवध परिषद उत्तर प्रदेश।