राजनीतिक पैंतरेबाजी में साधू वर्मा अव्वल, प्रथम नागरिक होने का रूतबा हासिल : गुलाब चंद्र यादव
1 min readराजनीतिक पैंतरेबाजी में साधू वर्मा अव्वल, प्रथम नागरिक होने का रूतबा हासिल : गुलाब चंद्र यादव
अम्बेडकरनगर। एकतरफा मुकाबले में नए नवेले भाजपा के वरिष्ठ नेता श्यामसुंदर वर्मा उर्फ साधुवर्मा जिलापंचायत अध्यक्ष की कुर्सी को कब्जा कर लिया ,जो पिछले समाजवादी पार्टी की सरकार में छलपूर्वक सुधीर सिंह मिंटू को चली गयी थी। हमेशा शांति पूर्वक दिखाई देने वाले साधुवर्मा के लिए यह दिन इतिहास के पन्नों में इसलिए लिखा जायेगा क्योंकि जिस पार्टी से वे जिलापंचायत अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे हैं,चुनाव में उस पार्टी के प्रत्याशियों को जनता ने पसंद ही नहीं किया । वैसे जिलापंचायत अध्यक्ष की कुर्सी सत्तासीन पार्टी ,बाहुबल और धनबल की होती है,परंतु राजनीतिक पैंतरेबाजी समय के हिसाब से महत्वपूर्ण होती है।
जिलापंचायत के चुनाव में किसी भी पार्टी के बड़े नेताओं ने चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्याशियों के लिए न रुचि दिखाई और न ही उन्हें समय दिया। जिससे लड़ने वाले अपने ही संसाधन से जनता के बीच गए और अपने स्तर से जनता के भावी हमदर्द बनकर जीते, और अपनी विचारधारा व अनुकूल वातावरण वाली पार्टी के प्रति वफादार हुए। खुद की व्यवस्था से चुनाव जीता उम्मीदवार कैसे मुफ्त में अपना कीमती वोट दे दे। ललचाई आँखें कुछ और ही निहार रहीं हैं। जिले से लेकर प्रदेश कार्यालय तक लड़ने वालों का पैनल पहुंचा या नहीं, अखिलेश यादव के फरमान से प्रदेश रबर स्टैम्प अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने अजीत यादव को उम्मीदवार बना दिया ,देखने से लगा कि कुछ नए जीते ऊर्जावान जिला पंचायत सदस्यों को छोड़कर कोई भी उनके साथ खड़ा नहीं दिखाई दिया। इसके बहुत से कारण हैं जो पहले से जन्म लेकर आते जाते लोंगों को दिखाई देते हैं। निचला कार्यकर्ता नेताओं की अपनी वर्तमान यथार्थ वादी व्यवस्था से काफी दूर होता है। परिणाम प्रतिकूल आने पर वह सबसे अधिक दुखी भी होता है।
जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के कुछ समय पहले जिले के दो बड़े नेताओं लालजी वर्मा व राम अचल राजभर को बसपा से निकाल दिया गया ।जिले व प्रदेश में बसपा ,भाजपा ,सपा में सनसनी फैल गया ।जिलापंचायत अध्यक्ष चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्याशी हार गए। एक साधुवर्मा ने बसपा का नीला कपड़ा उतारकर भगवा चोला पहन लिए,सपा ,बसपा और भाजपा में कोई ऐसा उम्मीदवार जीतकर आया ही नहीं कि वह चुनाव जीत सके। भाजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष कपिलदेव वर्मा अपनी सीट और जिलाध्यक्ष की कुर्सी छोड़कर जिलापंचायत अध्यक्ष बनने के चक्कर में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव ही हार गए यह उसी तरह हुवा जैसे सपा नेता विधान चौधरी के साथ हुवा था। अबकी जिला पंचायत के चुनाव में पिछड़ा आरक्षित होने से दबंग लोग चुनाव से बाहर हो गए।
अजीत यादव कैसे टिकट पाए इस पर सपा जिलाध्यक्ष राम शकल यादव ने अवधी खबर से कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का निर्णय सर्वोपरि है जो उनकी इच्छा है,उसी के अनुसार जिला कमेटी कार्य करेगी,इसके आगे की व्यवस्था में वे बोलने से बचते रहे। सवाल उठता है कि जिले की कमेटी किसी अन्य को चुनाव लड़ाना चाहती थी,जिसको राष्ट्रीय अध्यक्ष के संज्ञान में नहीं भेज गया।
जिले के समाजवादी पार्टी के एक कार्यकर्ता कहते हैं कि जब राष्ट्रीय अध्यक्ष उम्मीदवार का नाम ही नहीं तय करते तो फिर वे जिलापंचायत अध्यक्ष का नाम ऊपर से क्यों भेज दिए? निचले कार्यकर्ताओं के अधिकतर सवाल इसी तरह के होते हैं। पूरे प्रदेश में कोरोना के चलते बिना जिला कमेटी की सहमति के रबर स्टैंप वाले प्रदेश अध्यक्ष ने फेसबुक वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाकर अघोषित भाजपा व बसपा गठबंधन को दे दिया। जिसका परिणाम सबके सामने है। भाजपा ने सस्ते में वे सभी सीटें जीत लिया जो सपा की होने वाली थीं। अजीत यादव को वोट देने के लिए बैठे जिला पंचायत सदस्यों ने अपनी छोटी सी मुराद पूरी न होने पर वोट डालने से पहले काफी हंगामा किया। कई गुटों में बंटी समाजवादी पार्टी जिले में वर्चस्व को लेकर भी संशकित रहती है। अपरोक्ष रूप से निचले कार्यकर्ताओं के माध्यम से कीचड़ उछाले जाते हैं,आक्रोशित युवाओं ने अपनी भड़ास सोसल मीडिया में निकाला है जो जिले और पूरे प्रदेश के लिए शुभ संकेत नहीं है। रही बात चुनाव कोई हो अपने बूते लड़ा जाता है पार्टियां एक पहचान होती हैं,स्वयं अपने संसाधन से लड़े गए चुनाव वाले उम्मीदवार के लिए पार्टी का कोई विशेष एजेंडा नहीं होता, जीता हुआ सिकंदर अपने और समाज के लिए कितना कर पायेगा यह उसकी राजनीतिक चतुराई पर निर्भर करेगा ।यादव बनाम कुर्मी वाला अपरोक्ष और अघोषित युद्ध बंद हो जाना चाहिए ,आरोप लगाने से अपनी काबिलियत को छिपाया नहीं जा सकता कि आप स्वयं अपनी भूमिका में कहां खड़े थे। मंहगाई, बेरोजगारी,आर्थिक विपन्नता व सामाजिक विषमता में अकेले यादव ही नहीं पिस रहा है बल्कि वे सभी लोग पिस रहे हैं जो बोल नहीं रहे या फिर मौन हैं। लंबे समय की राजनीतिक पारी की शुरुआत करिए अपनी विचारधारा को मत छोड़िये वरना आने वाली पीढियां आपसे ही सवाल करेंगी ,सब कुछ खोकर आप उनके लिए कुछ नहीं कर पाएंगे। समय बहुत ही बलवान है,वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता,कभी कोरोना कभी डेल्टा वेरिएंट जैसे संक्रामक वायरस अपनी चपेट में ले लेगा,और आपके अपनो को ही 50 फिट की दूरी से प्लास्टिक की कफ़न में बांधकर शमशान घाट पर भेजवा देगा। आप कुछ भी नहीं कर पाएंगे। अपनी इम्यूनिटी को कम नहीं करिए ।चुनाव हारने और जीतने वाला कभी एक थे फिर एक होकर अपने अपने जिले का विकास करेंगे,जो जनता के हित में हो।