आज़ादी का अमृत महोत्सव : अपनी – अपनी दृष्टि : डॉ ओ पी चौधरी
1 min readआज़ादी का अमृत महोत्सव : अपनी – अपनी दृष्टि : डॉ ओ पी चौधरी
संपादकीय
‘जियें तो जियें उसी के लिए,यही अभिमान रहे,यह हर्ष
निछावर कर दें हम अपना सर्वस्व,हमारा प्यारा भारतवर्ष।’
हमारा जीवन अत्यंत व्यापक और अनंत है। जीवन के इस अनंत प्रवाह में प्रत्येक दिन नदियों की अनवरत बहती रहने वाली धारा के समान है। सृष्टि का यही क्रम अनंतकाल से चला आ रहा है और आगे चलता रहेगा। इस पथ प्रवाह में कुछ दिवस ऐसे होते हैं जो अपने भीतर अशेष घटनाओं की स्मृतियां संजोये रहते हैं। यदि उनका संबंध सम्पूर्ण राष्ट्र से संबंधित हो तो वे अमर हो जाती हैं। ऐसा ही है हमारा स्वतंत्रता दिवस,जिसकी 74वीं वर्षगांठ के साथ आज़ादी का अमृत महोत्सव प्रारम्भ होने जा रहा है जो वर्ष पर्यन्त जारी रहेगा। वास्तव में किसी भी राष्ट्र के लिए यह अत्यन्त गौरव की बात है कि वह अपने नवनिर्माण के 75वें वर्ष में पहुँच चुका है। हिन्द के वीर सपूत सुभाष चन्द्र बोस का यह कथन ‘ स्वतंत्रता की तड़प आत्मा का संगीत है’। इस तड़प का चरमोत्कर्ष और आत्मिक संगीत का अवसर हम सभी देशवासियों को 15 अगस्त,1947 को प्राप्त हुआ। माँ भारती की परतन्त्रता की बेड़ियाँ शताब्दियों के बाद कट सकीं।1857 से 1947 तक अनगिनत स्वतन्त्रता सेनानियों की शहादत और बलिदान की बदौलत हमें आज़ादी मिली। स्वतंत्रता मिली भी तो बंटवारे का दंश भी झेलना पड़ा,जिसमें लाखों लोग को अपने जीवन,परिवार,संपत्ति से हाथ धोना पड़ा। लेकिन आज हम सभी लोग आजाद देश मे सांस ले रहे हैं। स्वतंत्र देश के नागरिक हैं। यह हमारे लिये निश्चित रूप से गर्व की बात हैं और गौरव बोध होना भी चाहिये,जो हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान है।
इसके पीछे हमारे पूर्वजों वीर शिवाजी,महाराणा प्रताप,गुरु गोविंद सिंह,अहमद शाह अब्दाली,आज़ाद,भगत सिंह,नेता जी,अशफ़ाक़ उल्ला,महात्मा गांधी,नेहरू, पटेल,दुर्गा भाभी,बेगम हजरत महल,राजगुरु,खुदीराम बोस प्रभृत हजारों बलिदानियों की एक लंबी श्रृंखला है। लंबे समय तक चले स्वतन्त्रता संग्राम की अनेक अमर कहानियां मौजूद हैं । जिन्होंने अपना सर्वस्व आजादी की खातिर लुटा दिया था । कुछ तो हमे ज्ञात हैं परंतु बहुत कुछ ऐसे हैं जो स्वतन्त्रता के इतने बर्ष पश्चात भी अन्धेरे में ही हैं,गुमनाम हैं। इतिहासकारो की नजरों से अज्ञात हैं,जिनका इतिहास लिखे जाने की जरूरत है।
आज 75वें स्वतंत्रता दिवस पर हम विचार करे कि यह आजादी क्या वही आजादी है, जिसके लिये हजारों, लाखों क्रांतिकारियों ने धर्म, भाषा, जाति, समुदाय, राजनीति इत्यादि से परे जाकर हँसते -हँसते फांसी के फन्दे को माँ भारती की बेड़ियाँ काटने के लिए चूम लिया था। मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि नहीं यह आजादी सच्ची और वास्तविक आजादी नहीं है । यह तो सत्ता का हस्तांतरण मात्र हैं । गोरे अंग्रेजों की जगह अब स्वदेशी काले अँगेज आ गए हैं । चन्द मुठ्ठीभर लोग शासन को अपनी इच्छानुसार चला रहे है ।
देश का बहुसंख्यक वर्ग गरीबी की गर्त में समाता चला जा रहा हैं । जिसको अपने जीवन यापन के लिये 16 से 18 घण्टे काम करना पड़ता हैं उसके उपरांत भी वह सुख पूर्वक अपना जीवन नही बिता सकता है(राम पाल गंगवार)।
विगत बर्षो में विशेषकर कोविड काल में गरीबों और पूजीपतियों के बीच की खाई में बेतहाशा बृद्धि हुई हैं । पूँजीपति की सम्पत्ति में रातों- रात बृद्धि हो रही हैं।निःसन्देह हमारे देश मे अरबपतियों की संख्या में तेजी के साथ इजाफा हुआ है । दूसरी ओर मेहनतकश गरीब- मजदूर दो जून की रोटी हाड़ तोड़ मेहनत के बाबजूद भी ठीक से नही जुटा पा रहा है। कमरतोड़ मंहगाई आग में घी का काम कर रही है। एक ही देश की दो अलग- अलग तस्वीर- एक तरफ इंडिया है ,तो दूसरी ओर भारत है।
सम्पूर्ण देश का पेट भरने वाला अन्नदाता किसान सर्दी, गर्मी, बरसात, सूखा -बाढ़ जैसी आपदाओं और बिषम परिस्थितियों को झेलकर भी अनाज पैदा करता है,लेकिन उसे अपनी उपज का सही मूल्य नही मिल पाता है। आज हमारे देश मे किसान भाई आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं । सरकार किसान की आय को दुगना करने के दावे पेश कर रही है,लेकिन ऐसा नही है। किसान दिनभर अपने खेतों में पसीना निकालता हैं रात को छुट्टा जानवरों से अपनी फसल की चौकीदारी भी करता है।दिन भर की हाड़ तोड़ श्रम के बाद भी आराम नहीं, फसल की सुरक्षा की चिंता। उसके बछड़ों और पड़वों का कोई खरीददार नहीं,उस मिलने वाली धनराशि से भी किसान वंचित और फसल चरकर जो नुकसान करते हैं,उससे अलग परेशानी। डीजल की मंहगाई से खेतों की जुताई, सिंचाई,फसलों की कटाई और मड़ाई सभी महँगी।एम एस पी पर सरकारी खरीद पर बेंच पाना कारगिल युद्ध जीतने जैसा है। हम तो बेच भी नहीं पाए। विचौलिये को देकर ही बेटियों के हाथ पीले कर पाए। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बिगत 8 महीनों से किसान अपना घर परिवार छोड़कर डेरा डाले हुए हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों के प्रति उदासीन बनी हुई है।
आज शराब के कारोबारी बहुत तेजी के साथ फल-फूल रहे हैं । जबकि शराब स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं। लाखों परिवारों के जीवन को बर्बाद करने वाली हैं परंतु शराब से सरकार को टैक्स अधिक मिलता है इसलिए उसके बिक्री बढ़ाने पर ज्यादा जोर है। राजस्व के चक्कर में जन हानि की परवाह कौन करता है।सरकार का आबकारी विभाग एक ओर शराब की अधिक बिक्री पर जोर देता है तो दूसरी ओर सरकार का ही मद्य निषेध विभाग उससे बचाने हेतु प्रयासरत रहता है। शिक्षा, स्वास्थ्य ,पानी, बिजली और रोजगार प्रमुख चुनावी मुद्दे चुनाव से ही गायब हो गए हैं।मंदिर -मस्जिद के नाम पर वोट की राजनीति को सभी दल वरीयता दे रहे हैं।अब संस्कार और संस्कृति की उपेक्षा हो रही है।
व्यक्ति की सफलता का आँकलन उसके रहन- सहन, कपडों,मंहगी गाड़ियों औऱ बैक-बेलेंस से देखा जाने लगा है।उसकी विद्वत्ता, ज्ञान,संस्कार को पीछे छोड़ दिया जा रहा है। समतामूलक समाज,सबका साथ, सबका विकास का सपना केवल सपना ही बनकर रह गया है। हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा।अपनी युवा शक्ति,प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रयोग,राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना,अनुशासित और सर्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत होकर दृढ़ संकल्प लेना होगा तभी स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव,आत्मनिर्भर,शक्तिशाली,समृद्ध और खुशहाल भारत की आधार शिला बन सकेगा।
जय हिंद,जय भारत।
लेखक…
डॉ ओ पी चौधरी
समन्वयक,अवध परिषद उत्तर प्रदेश,
संरक्षक,अवधी खबर,
एसोसिएट प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी।
मो 9415694678