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“संबंधों को कमजोर करती शंकाएं”

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“संबंधों को कमजोर करती शंकाएं”

संपादकीय। शक,संदेह, सुबहा,शंका सभी का मतलब है किसी बात,व्यक्ति पर अनायास एक कयास लगा लेना कि अमुक व्यक्ति ऐसा कर रहा है।कितनी मार पीट की घटनाएं केवल आशंकाओं के कारण हो जाती हैं, तो कितने पारिवारिक रिश्ते टूट जाते हैं,परिवार बिखर जाते हैं। यह एक प्रकार का मानसिक रोग है। लोग बाग कहते हैं कि शंका ही भूत होता है। ऐसी ही एक कहानी सुनाने का मन है ताकि आशंकाओं के घनघोर बादलों से घिरने के पश्चात भी हम अपने को थोड़ा धीर गंभीर रखें,धैर्य रखें। कहीं ऐसा न हो कि बाद में संगीता (सभी पात्र काल्पनिक हैं) की तरह पश्चाताप करना पड़े।
संगीता अपने पति की फैक्ट्री के निकट बने एक रेस्टोरेंट में बैठी हुई थी। उसकी निगाहें बार-बार फैक्ट्री के मेन गेट की ओर उठ जाती थीं,उसका चित्त शांत नहीं था,बेचैनी थी। बस छुट्टी होने के पश्चात उसे अपने पति संजय के फैक्ट्री से बाहर निकलने का इन्तजार था। कल ही उसे उसकी घनिष्ठ सहेली मीनू ने बताया था कि तुम्हारे पति हर महीने की पहली तारीख को किसी के घर रुपये देने जाते हैं। मीनू ने पहले भी कई बार इस बारे में संगीता से बात करनी चाही थी मगर संगीता को अपने पति संजय पर इतना अधिक विश्वास था कि उसने मीनू की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया था। मगर कल जब मीनू ने बहुत ही आत्मीयता के साथ,विश्वास के साथ संगीता को बताया कि उसने पिछले महीने और उससे पहले भी पहली तारीख को संजय को एक महिला के घर जाते स्वयं अपनी आँखों से देखा था तो यह सुनकर संगीता बहुत परेशान हो उठी थी और मन ही मन निश्चय कर ली थी कि पहली तारीख को इसका खुलासा करके रहेगी। और आज महीने की पहली तारीख थी। मीनू के अनुसार आज संजय उस स्त्री के घर जायेंगे। संगीता के मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे थे। संजय उस स्त्री के यहां क्यों जाता है ? उसका उस स्त्री से क्या सम्बन्ध है? संजय ने उसे इस राज के बारे में पहले बताया क्यों नहीं ? उससे छिपाया क्यों? वह जितना सोच रही थी उसकी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। मानव मन की स्थित बड़ी विचित्र होती है। यदि किसी के बारे में मन में एक बार शंका उत्पन्न हो जाए तो फिर हमें उस ब्यक्ति की हर गतिविधि संदिग्ध लगने लगती है। यही हाल इस समय संगीता के मन का था ।इस समय उसे अपने पति की बीती कई बातें बड़ी विचित्र लग रही थीं,जो इससे पूर्व कभी नहीं लगी थी।
अभी वह इसी खयालों में खोई थी कि फैक्ट्री का साइरन बज उठा था। फैक्ट्री की छुट्टी हो गई थी। अब कुछ ही देर में संजय फैक्ट्री से बाहर निकलने वाला ही था इसलिए संगीता रेस्टोरेंट से निकलकर अपने साथ लाई टैक्सी में आकर बैठ गई। कुछ ही देर बाद उसके पति संजय की कार फैक्ट्री के गेट से बाहर निकली। कार संजय खुद ड्राइव कर रहा था। संगीता ने टैक्सी ड्राइवर से कार का पीछा करने को कहा। आज वह इस रहस्य से पर्दा उठा देना चाहती थी,जो उसके मन को बेचैन किए था। लगभग तीन किलोमीटर तक कई गलियों से गुजरने के बाद संजय की कार एक मकान के सामने जाकर रुक गई। यह एक पुराना मोहल्ला लग रहा था। यहां मध्यम वर्गीय लोग रहते थे,ऐसा उसकी बसावट से लग रहा था। संगीता को बड़ी हैरानी हो रही थी कि संजय यहां क्यों आता है। तभी संजय ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई। एक युवा स्त्री ने बड़ी सहजता से आकर दरवाजा खोला। संजय सूटकेश लेकर उसके पीछे-पीछे चल दिया। इससे पहले कि दरवाजा बन्द हो संगीता भी अन्दर आ गई। उस स्त्री ने संगीता को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। तभी संजय की नजर संगीता पर पड़ी। संगीता को वहां देख संजय को बड़ी हैरानी हुई। उसने पूछा संगीता तुम और यहां ? “हाँ मैं जानना चाहती थी कि आप हर महीने की पहली तारीख को इस स्त्री को रूपए देने क्यों आते हैं? आखिर आपका इससे क्या सम्बन्ध है” ? संगीता,संजय की ओर घूरते हुए बोली।
संजय ने संगीता की ओर क्रोध भरी नजरों से देखा। वह बोला-‘तुम लोगों की नजरों में स्त्री और पुरुष के बीच बस एक ही सम्बन्ध होता है प्यार का। संगीता तुम्हारी सोच इतनी घटिया होगी मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।’ फिर वह संगीता की बांह पकड़कर उसे अन्दर की ओर लगभग घसीटते हुए बोला-’तुम जनाना चाहती हो कि मेरे और इस स्त्री के बीच क्या सम्बन्ध हैं तो अन्दर आओ और खुद अपनी आँखों से देख लो।
वह घसीटता हुआ संगीता को अन्दर ले गया। अन्दर एक आदमी बेड पर तकिया लगाए लेटा था। संगीता यह देखकर हैरान रह गई कि उसके दोनों पैर कटे हुए थे।बरामदे में बिछी दरी पर कुछ बच्चे बैठे थे। उनके हाथों में कापी,पेंसिल और किताबें थीं।

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   संजय,संगीता की ओर देखकर ऊँचे स्वर में बोला-‘यह सोमेश है मेरी फैक्ट्री का सबसे होनहार टैक्निशियन।आज हमारी फैक्ट्री जिस ऊँचाई और मुकाम पर पहुँची है उसके पीछे सबसे बड़ा हाथ सोमेश का है। सोमेश की योग्यता से प्रभावित होकर कई फैक्ट्री के मालिकों ने उसे यहां से दोगुने वेतन का लालच दिया मगर सोमेश मेरा बहुत बफादार कर्मचारी था इसलिए वह मेरी फैक्ट्री को छोड़कर कहीं नहीं गया और मेरे साथ ही रह गया। आज से लगभग सात साल पहले सोमेश एक मशीन की चपेट में आ गया। उसके दोनों पैर मशीन में फंसकर बुरी तरह चोटिल हो गये थे। बड़ी मुश्किल से सोमेश को मशीन से बाहर निकाला जा सका। मैंने सोमेश को तत्काल एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। डाक्टरों ने हर सम्भव कोशिश की लेकिन टांगों में सेप्टिक हो जाने के कारण उन्हें सोमेश की दोनों टांगें काटनी पड़ी थीं। मजदूर यूनियन के नेताओं ने सोमेश और उसकी पत्नी को फैक्ट्री मालिक के खिलाफ केस दर्ज कराने और उनसे हरजाने की भारी भरकम धनराशि मांगने के लिए खूब उकसाया था। मगर सोमेश इसके लिए तैयार नहीं हुआ था। उसने कहा कि दुर्घटना मेरी लापरवाही से हुई थी फैक्ट्री मालिक का इसमें कोई दोष नहीं है।
     सोमेश तभी से बिस्तर पर है। वह कुछ कर नहीं सकता। उसकी पत्नी बबिता ग्रेजुएट है वह घर पर बच्चों को पढ़ाती है,लेकिन उसकी इतनी आमदनी नही होती है कि उससे घर का खर्च चल जाय। इसलिए मैं हर महीने की पहली तारीख को सोमेश का वेतन देने आता हूँ।“और कुछ जानना है तुम्हें ?“ उसने संगीता की ओर घूरते हुए पूछा।

संगीता का सिर शर्म से नीचे झुक गया था। उसे अहसास हो रहा था कि उसने अपने पति पर अविश्वास करके अक्षम्य अपराध कर दिया है।
अब वह अपने पति का सामना कैसे कर पाएगी यह सवाल बार-बार उसके जेहन में कौंध रहा था। उसे अपने ऊपर बड़ी ग्लानि महसूस हो रही थी।पश्चाताप की अग्नि में झुलस रही थी,उसका मन पहले से भी अधिक बेचैन हो गया। तब तक बबिता चाय बना लाई थी। उसने संजय और सोमेश को चाय देने के बाद एक कप संगीता की ओर बढ़ाया। संगीता ने उससे चाय का कप लेकर मेज पर रख दिया और बबिता की ओर दोनों हाथ जोड़कर कहा-‘मैं तुम्हारे साहब की पत्नी हूँ। मैंने अचानक इस प्रकार यहां आकर बहुत बड़ी गलती कर दी। यदि हो सके तो मुझे माफ कर देना।”
“यह आप क्या कह रही हैं मालकिन ? मैं एक स्त्री हूँ आपके मन:स्थिति को समझ सकती हूँ। मैं और ये तो हर बार मालिक से कहते हैं कि अब किसी तरह कोचिंग से घर का खर्चा चल निकला है इसलिए अब आप वेतन लेकर नहीं आया करें। लेकिन मालिक इतने दयालु हैं कि वे मानते ही नहीं हैं।”
ऐसा मत कहो बबिता बहिन। अगर तुम और सोमेश भैया वेतन लेने से मना करेंगे तो मैं समझूंगी कि आप लोगों ने मुझे दिल से माफ नहीं किया। संगीता बहुत ही भावुक स्वर में बोली।संगीता की बातों से संजय के दिल को बड़ी राहत मिली थी। अब माहौल काफी हद तक सामान्य हो गया था। और सब लोग साथ मिलकर चाय पीने लगे थे। अब संगीता भी अपने को तनाव रहित अनुभव कर रही थी। उसने याचना भरी नजरों से अपने पति की ओर देखा था। उसकी आंखों में पश्चाताप की भावना साफ झलक रही थी।

डॉ ओ पी चौधरी
सह आचार्य एवम अध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी।
संरक्षक, अवधी खबर

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