---Advertisement---

खरीफ मे तिल उत्पादन की उन्नत तकनीक : प्रो.रवि प्रकाश 

1 min read

खरीफ मे तिल उत्पादन की उन्नत तकनीक : प्रो.रवि प्रकाश 

---Advertisement---

लखनऊ। तिल का उपयोग रेवडी , लडड् बनाने के साथ-साथ अन्य विभिन्न रूप मे किया जाता है। इसके तेल का उपयोग पूजा पाठ, शरीर मे लगाने के काम आता है।  तिल की खेती अनउपजाऊ भूमि में किसानों द्वारा की जाती है। हल्की रेतीली, दोमट मिट्टी तिल उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है। भूमि की दो-तीन जुताईयाँ कल्टीवेटर से कर एक पाटा लगाना आवश्यक है ,जिससे भूमि बुवाई के लिए तैयार हो जाती है। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्व विधालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो.रवि प्रकाश मौर्य ने खरीफ मे तिलहन के रूप मे तिल की खेती करने की सलाह दी। उन्होने बताया कि इसकी खेती अकेले या सहफसली के रूप में अरहर,मक्का एवं ज्वार के साथ की जा सकती है। तिल की बुवाई कतारों में करनी चाहिए जिससे खेत में खरपतवार एवं अन्य कृषि क्रिया में आसानी हो सके।
इसलिए तिल की बुवाई 30 -45से.मी. कतार से कतार एवं 15 से.मी. पौध से पौध की दूरी एवं बीज की गहराई 2 से.मी. रखी जाती है। मानसून आने पर जुलाई के द्वितीय पखवारे में तिल की बुआई अवश्य कर देनी चाहिए। एक किलोग्राम स्वच्छ एवं स्वस्थ बीज /बीघा (एक है. का चौथाई भाग) की दर से प्रयोग करें।बीज का आकार छोटा होने के कारण बीज को रेत,राख या सूखी हल्की बलुई मिट्टी मे मिला कर बोये। तिल की उन्नतशील प्रजातियाँ टा-78,शेखर,प्रगति, तरूण आदि की फलियाँ एकल ए्वं सन्मुखी तथा आर.टी..351प्रजाति की फलियाँ बहुफलीय एवं सन्मुखी होती है। पकने की अवधि 80-85दिन एवं उपज क्षमता 2.0-2.50कुन्टल प्रति बीघा है। थीरम 3 ग्राम एवं 1.ग्रा. कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा.बीज की दर से उपचारित करके ही बीज को बोना चाहिए। मृदा परीक्षण के आधार पर उर्बरकों का प्रयोग करें।


तिल की बोआई के समय प्रति बीघा 8 कि.ग्रा. यूरिया, 31कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट एवं 5 कि.ग्रा. गंधक या 50किग्रा जिप्सम की आवश्यकता होती है। 8किग्रा. यूरिया की मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद देना चाहिए।प्रथम निराई गुडाई ,बुवाई के 15 से 20 दिन बाद, दूसरी निराई 30-35 दिन बाद कर सकते है। निराई गुडाई करते समय विरलीकरण कर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी कर ले। पोधों की पत्तियां जब पिली पड़ने लगे तब फसल की कटाई करना अत्यंत आवश्यक है, नही तो फलियों से दाने चटक कर जमीन पर गिर जाते है। कटाई करने के उपरांत कुछ दिन के लिए एक जगह रख कर सुख लिया जाना चाहिए इसके उपरांत गहाई करके स्वच्छ एवं साफ बोरोंं में भंडारित करना चाहिए।

About Author

---Advertisement---

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

---Advertisement---