ऐसे करें खरीफ में मक्का की खेती : प्रो. रवि प्रकाश
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लखनऊ। खरीफ में धान के बाद मक्का बलिया की मुख्य फसल है । इसकी खेती दाने ,भुट्टे एवं हरे चारे के लिए की जाती है। इसके दाने से लावा, सत्तू, आटा बनाकर रोटी, भात . दर्रा, चिउड़ी ,घुघनी आदि ग्रामीण क्षेत्रो मे आसानी से बनाया जाता है।
आचार्य नरेंन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि मक्का पूर्वाच्चल मेंं साल भर किसी न किसी जनपद में देखने को मिल जाता है। यह ऐसी फसल है, जिसके भुट्टे दुग्धा अवस्था से प्रयोग आने लगता है। ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न उत्पाद बनता है परंतु शहरों में घर ए्वं होटलों में कार्नफ्लेक्स के रूप में ज्यादा प्रयोग होता है।
मृदा ए्वं खेत की तैयारी – मक्का के लिए बलुई दोमट भूमि अच्छी होती हैः मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई तथा 2-3 बार हैरो से जुताई करे।
उन्नत किस्में – संकर किस्में – ,पूसा शंकर मक्का -5, मालवीय संकर मक्का -2, एवं प्रकाश शीध्र पकने वाली प्रजातियां (80-90दिन) है।गंगा -11, सरताज 100 से 110 दिन मे पकने वाली प्रजातियाँ है। संकुल प्रजातियों में शीध्र पकने वाली (75-85दिन ) गौरव,कंचन, सूर्या, नवजोत एवं. 100-110 दिन मे पकने वाली प्रजाति प्रभात है।
बीज दर – प्रति बीघा 5 किग्रा.बीज. की आवश्यकता होती है। बुआई का समय – देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई मध्य जून तक पलेव करने बाद कर देनी चाहिए तथा शीध्र पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के अन्त तक की जाती है। जिससे बर्षा से पहले पौधे खेत में भली भाँति स्थापित हो जाय।
बुआई की विधि – हल के पीछे कूड़ो में या सीड ड्रिल से बुआई करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी. पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी. रखनी चाहिए तथा गहराई 3 -5 सेमी से ज्यादा नही होनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक – मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक का प्रयोग करें। बुआई से पहले 26 किग्रा यूरिया, 32.5 किग्रा. डी.ए.पी ए्वं 25 किग्रा म्यूरेट आफ पोटाश तथा 5 किग्रा जिंक सल्फेट का प्रयोग प्रति बीघा की दर से कुड़ों मे डालना चाहिए। 25-30 दिन की पौध होने पर निराई के बाद 12.50 किग्रा यूरिया की टाप ड्रेसिग करें तथा पुनः मंजरी बनते समय 12.50 किग्रा. यूरिया पुनः डालें।
सिंचाई – प्रारंभिक ए्वं सिल्किग (मोचा ) से दाना बनते समय खेत मे नमी का होना आवश्यक है बर्षा न होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
अन्तवर्ती खेती – असानी से मक्का के साथ उर्द , मूँग एवं लोविया की अंतः खेती किया जा सकता है।
फसल की देखरेख – कौआ, सियार आदि अन्य जानवरों से फसल की रखवाली आवश्यक है।
कटाई मडा़ई – भुट्टों की पत्तियां जब 75 प्रतिशत पीली पड़ने लगे तो कटाई करनी चाहिए। भुट्टो की तुड़ाई करके उसकी पत्तियों को छीलकर धुप में सुखाकर हाथ या मशीन द्वारा दाना निकाल देना चाहिए।
उपज – अच्छी तरह खेती करने पर प्रति बीघा ( 2500वर्ग मीटर / 20 कट्ठा / एक है. का चौथाई भाग ) में शीध्र पकने वाली प्रजातियों की 7-10 कुन्टल एवं देर से पकने वाली प्रजातियों की 10-12 कुन्टल उपज प्राप्त किया जा सकता है।