बसंतकालीन उर्द की उन्नत खेती : प्रो. रवि प्रकाश
1 min readबसंतकालीन उर्द की उन्नत खेती : प्रो. रवि प्रकाश
लखनऊ। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने जहाँ पानी की व्यवस्था हो वहाँ बसंतकालीनउर्द की खेती करने की सलाह दी है। प्रो.मौर्य के अनुसार इसकी खेती करने से अतिरिक्त आय, खेतों का खाली समय में सदुपयोग, भूमि की उपजाऊ शक्ति में सुधार, पानी का सदुपयोग आदि के कई फायदे बताए गए है।
जलवायु : उर्द मे गर्मी सहन करने की क्षमता अधिक होती है एवं इसकी जडे़ अधिक गहराई तक जाती है। इसकी वृद्धि के लिये 22-28 सेंटीग्रेट तक तापमान अच्छा रहता है।
मृदा एवं खेत की तैयारी : उर्द उपजाऊ एवं दोमट या बलुई दोमट मृदा, जिसका पी.एच मान 6.3 से 7.3 तक हो तथा जल निकास की व्यवस्था हो तो अच्छी होती है।
बुआई का उचित समय : 15 फरवरी से 15 मार्च तक बुआई अवश्य कर दें । देर से बुआई करने से फूल एवं फलियां गर्म हवा के कारण तथा बर्षा होने से क्षतिग्रस्त हो सकती है।
उन्नतशील किस्में अवधि एवं उपज क्षमता : नरेन्द्र उर्द -1,आजाद उर्द-1, के.यू.300,प्रताप उर्द -1,विश्वास, बल्लभ उर्द-1 आदि प्रमुख किस्में है। यह किस्में सिंचित इलाकों में गर्मियों के मौसम में उगाई जाती है। जो 70से 80 दिनोँ में पककर तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार प्रति एकड़ 4 से 5 कुंतल है।
बीज की मात्रा ,बीजोपचार एवं दूरी: गर्मियों में 10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में डालना चाहिए। कुड़ों मे 4-5 से .मी. की गहराई पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से.मी. तथा पौधो से पौधो की दूरी 10 सेमी. पर बुआई करने से जमाव ठीक होता है। बीज जनित रोगों से बचाव के लिए उपचार हेतु प्रति किलोग्राम बीज में 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करे। इसके बाद बुआई के 8-10 घंटे पहले 100 ग्राम गुड़ को आधा लीटर पानी में घोलकर गर्म कर ले। ठंडा होने के बाद उर्द के राईजोबियम कल्चर एक पैकेट को गुड़ वाले घोल मे डालकर मिला ले। तथा उसे बीजों पर छिड़ककर हाथ से अच्छी तरह से मिला दें। जिससे प्रत्येक दाने पर टीका चिपक जाए। इसके बाद बीज को छाया में सुखाकर बुआई करनी चाहिए।
खाद ए्वं उर्वरक प्रबंधन : मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरको का प्रयोग करें । समान्यतः 40 किग्रा. डी.ए.पी. 13 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश एवं 50 किग्रा. फास्फोजिप्सम प्रति एकड़ में प्रयोग से उपज मे विशेष बृध्दि होती है। बुआई के समय उर्वरको को कूड़ों मे देनी चाहिए।
सिंचाई : सिंचाई भूमि के प्रकार, तापमान एवं हवा की तीब्रता पर निर्भर करती है। 3-4 सिंचाई प्रर्याप्त होती है, पहली सिंचाई बुआई के 25 से 30दिन के पश्चात करें। उसके बाद आवश्यकतानुसार 12-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करे। शाखाएं बनते समय, फूल आने एवं दाना बनते समय सिचाई अधिक लाभदायक होता है।
खरपतवार प्रबंधन : गर्मी मे खरपतवार कम उगते है फिर भी बुआई के क्रांति काल( बुआई के 20-25 दिन पश्चात ) तक खरपतवार मुक्त फसल रखना आवश्यक है।
कटाई : जब फलियां पक जाएं तो कटाई कर सकते है।