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वहां पे मुहिब्बे अली का ही बस ठिकाना है : फ़ीरोज़ वसी

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अम्बेडकरनगर (अवधी खबर)। अजादारी के साथ इबादते इलाही अनिवार्य है। अन्यथा नौहोमातम, अमारी, जुलूस, शब्बेदारी निरर्थक है। केवल इमाम हुसैन को मानना प्रयाप्त नहीं है बल्कि जरुरी यह है कि इमाम हुसैन के संदेशों को आत्मसात किया जाए।
यह बात मौलाना मोहम्मद रजा रिजवी ने इमाम बारगाह बैत-उल-अज़ा मीरानपुर में कही। वह डा. कासिम हुसैन द्वारा मरहूम सादिक हुसैन और मरहूम आबिद हुसैन पुत्रगण मरहूम इब्ने हसन के ईसाल-ए-सवाब के लिए आयोजित सालाना मजलिस को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इंसान को धरती पर रब ने विशेष उद्देश्य हेतु एवं अनेक प्रकार के उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए भेजा है। लिहाजा अपने कर्त्तव्यों को दृष्टिगत रखकर जीवनयापन करें। मौलाना मोहम्मद रजा ने कर्बला वालों के दिखाए मार्ग पर चलने की नसीहत किया।
उससे पूर्व इंजीनियर फिरोज वसी रिजवी जौनपुरी ने कलाम पेश करते हुए कहा वो दिल में रखता है जन्नत की आरजू भी वसी, वहां पे मुहिब्बे अली का ही बस ठिकाना है। वरिष्ठ कमर अकबरपुरी ने कहा दश्ते बला में शाने विलायत हुसैन हैं, कुर्आं के साथ हम्द की सूरत हुसैन हैं। दानिश अली ने पढ़ा बहते खूं से लिख दिया, आखिर खुदा के नाम को। जबकि सज्जाद अस्करी ने कहा बला के गम उठाए जा रहे हैं, जफा के तीर खाए जा रहे हैं। असरार हुसैन ने पुरदर्द आवाज में शायर कासिद अकबरपुरी द्वारा रचित नौहा नहर पे जाके सदा देती है रोकर जैनब पढ़ा तो वातावरण शोकपूर्ण हो गया।

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