इल्म सीखना व सिखाना सबसे बड़ा सदक़ा : अकबर अली वाएज़ जलालपुरी
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अंबेडकरनगर। कुरान शरीफ में क्षमा याचना पर बल दिया गया है। अपनी गलतियों और गुनाहों के लिए क्षमा प्रार्थी होने पर न सिर्फ इंसान का कद ऊंचा होता है बल्कि रब भी खुश होता है। यह तथ्य जामा मस्जिद मीरानपुर के पेश इमाम मौलाना अकबर अली वाएज जलालपुरी ने प्रस्तुत किया। वह डॉ. आमिर अब्बास ‘लकी’ की ओर से समाजसेवी एवं हसन हास्पिटल के संचालक मरहूम डॉ.सैयद मोहम्मद हसन के पुण्य हेतु आयोजित मजलिस कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
मौलाना ने आगे कहा कि अल्लाह रब्बुल इज्जत सामूहिक दुआखानी को पसंद करते हैं। पवित्र पुस्तक कुरान में दर्ज है ऐ परवर दिगार हमें, हमारे वाल्दैन और मोमिन व मोमिनात को माफ कर दे। इसके अतिरिक्त अपने ईमान की हिफाजत तथा हिदायत पर बाकी रहने की भी प्रार्थना निरंतर करते रहना चाहिए। इसी प्रकार गुरुवार को बड़ा इमामबाड़ा मीरानपुर में दिवंगत नेहा जहरा पुत्री हसन अब्बास के फातिहे की मजलिस पढ़ते हुए मौलाना अकबर अली वाएज ने कहा कि माहे रमजान में अधिकाधिक सदका व खैरात निकालना श्रेयस्कर है। सबसे बड़ा लाभकारी सदका यह है कि स्वयं भी इल्म सीखे और दूसरों को भी इल्म सिखाए। अंत में कहा कि माहे रमजान वह महीना है जिसमें इंसान की सांस भी तस्बीह और इबादत में शुमार की जाती है। खुदा बंदे आलम ने रोजे को वाजिब करार दिया है। रोजे में कुछ चीजें मुस्तहब हैं जिसमें एक सहरी भी है। सहरी करने से ताकत के साथ सवाब में भी इजाफा होता है। सहरी को बरकत का जरिया करार दिया गया है। रसूले अकरम का कथन है अल्लाह तआला और उसके फरिश्ते सहरी करने वालों और सहरी के वक्त इस्तेगफार करने वालों पर सलवात भेजते हैं। साथ ही यहां पैगंबरे इस्लाम का कथन है तुम में से हर एक शख्स को चाहिए कि वह सहरी करे, चाहे एक घूंट पानी ही क्यों न हो। आरिफ अनवर अकबरपुरी, दानिश अली, महफूज अली आदि ने पेशखानी किया।