समाजवाद के सजग प्रहरी थे डॉ. लोहिया
1 min readअम्बेडकरनगर – अली अस्करी नक़वी। समाजवाद के सजग प्रहरी डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का निधन 12 अक्टूबर 1967 को दिल्ली के वेलिंगटन नर्सिंग होम में हुआ था। आज उनकी 55वीं पुण्यतिथि है। अकबरपुर नगर के मुहल्ला शहजाद्पुर में सन् 1910 में 23 मार्च को एक वैश्य परिवार में जन्म लेने वाले डा. लोहिया के पिता हीरालाल पेशे से अध्यापक थे। जब उनकी आयु मात्र ढाई वर्ष की थी तभी माता चंदादेवी का देहांत हो गया था। उनकी प्राथमिक शिक्षा यहीं पर हुई। बाद की तालीम वाराणसी, मुंबई, कोलकाता में हुई। डाक्टरेट की उपाधि बर्लिन-जर्मनी से हासिल किया। आगे चलकर राजनीति के माध्यम से वह कर्मपथ पर ऐसे आगे बढ़े की उनका समाजवाद समाज का पथप्रदर्शक बन गया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी प्रमुख भूमिका रही। अंग्रेजी के घोर विरोधी डा. लोहिया का हिंदी से विशेष लगाव था। इसके अतिरिक्त वे भारत में प्रचलित सभी भाषाओं के पक्षधर थे। उर्दू से भी उनका नाता था। नगर के मुहल्ला मीरानपुर निवासी व राजनीति में उनके विश्वसनीय सहयोगी रहे मरहूम चौधरी सिब्ते मुहम्मद नकवी से हिंदी के अलावा लोहिया जी प्रायः उर्दू भाषा में भी पत्राचार करते रहते थे। उनके लिखे खत आज भी सुरक्षित हैं।
आजादी के आंदोलन में समाजवादी नेता के तौर पर अपना अहम योगदान देने वाले राममनोहर लोहिया कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से रहे। आगे चलकर उन्होंने अपनी अलग समाजवादी विचारधारा के चलते कांग्रेस से रास्ते अलग कर लिए थे। उस समय वह सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य थे, जब किसान मजदूर पार्टी के साथ मिलकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी तो इससे नाराज लोहिया ने 1956 में सोशलिस्ट पार्टी (लोहिया) का गठन किया। 1962 के चुनाव में उन्हें फूलपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों हार मिली। 1963 के लोकसभा उपचुनाव में उन्होंने फर्रुखाबाद से किस्मत आजमाया और जीते 1965 में उन्होंने अपनी सोशलिस्ट पार्टी का विलय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में कर दिया। 1967 के चुनाव में वह कन्नौज लोकसभा सीट से विजयी हुए थे। रुपयों का इंतेजाम न पाने के चलते गई थी। डा. राममनोहर लोहिया को पुण्यतिथि पर प्रत्येक वर्ष याद करके जन्मभूमि गौर्वान्वित होती है। लोहिया की जान :
लोहिया जी को बढ़े हुए प्रोस्टेट ग्लैंड के इलाज के लिए विदेश जाना था। लेकिन वांछित राशि का प्रबंध नहीं हो पाने से विदेश जाने से वंचित रहे। दिल्ली में ही ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन के बाद हुए इंफेक्शन की वजह से देश ने अपना एक महान नेता खो दिया। दिल्ली के जिस वेलिंगटन नामक चिकित्सालय में निधन हुआ था, वर्तमान में वह डा. राममनोहर लोहिया हास्पिटल के नाम से जाना जाता है। बहरहाल अपने उसूलों के पक्के तथा कभी अपने सिद्धांतों से समझौता न करने वाले लोहिया को भले ही अपनी जन्मभूमि में उपेक्षा का शिकार होना पड़ा हो लेकिन उनके विचार एवं आदर्श पहले की तरह आज भी प्रासंगिक है।
