ज़ुल्म ये कैसा हुआ, हाए हसन अलविदा…
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अंबेडकरनगर। जुल्म ये कैसा हुआ, हाए हसन अलविदा शायरे अहलेबैत सैय्यद इब्ने हसन तकवी ‘आकिल फैजाबादी’ के लिखे नौहे की इस पंक्ति को अंजुमन अकबरिया के रजा अनवर, बादशाह, काजिम, असरार, रजी, इमरान, सादिक ने पढ़ा तो लोग गमगीन हो गए।
रसूले अकरम तथा दूसरे इमाम हजरत हसन अलैहिस्सलाम के बलिदान दिवस 28 सफर के अवसर पर अंजुमन अकबरिया पंजीकृत के नेतृत्व में 168वें दौर के इस मातमी जुलूस में अनेक नौहे प्रस्तुत किए गए जिसमें हसन-ए-मुज्तबा सब्ज कबा शीर्षक से भी एक तारीखी कलाम था। अंजुमन अकबरिया के नौहाखान रहे मरहूम आबिद हुसैन मुच्छन और मिर्जा अफगन के आवासीय अजाखाने में वरिष्ठ आलिमेदीन मौलाना सैयद मोहम्मद अब्बास रिजवी ने कहा कि अल्लाह तआला ने सिर्फ दो चीजें को अपने जिम्मे लिया है। एक निजामे हिदायत और दूसरा जिंदगी और मौत। हिदायत के लिए संसार में हमेशा हादी रहे एवं कयामत तक रहेंगे। हम सब को इस बात का सदा ध्यान रहना चाहिए कि हमारे किस अमल से परवर दिगारे आलम खुश या नाराज होंगे। विडम्बना ही है कि रसूले खुदा का कल्मा पढ़ने के बावजूद मुनाफिकों ने शमा-ए-रिसालत को बुझा दिया।